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उम्र पर कविता :- रेत सी फिसलती है | उम्र के बारे में कविता


उम्र पर कविता में पढ़िए कैसे बीत जाती है उम्र फिसलती रेत की तरह और हमें बीती हुयी उम्र यूँ लगती है जैसे अभी कल ही निकली हो। उन्हीं बीतें पलों को याद करती हुयी यह कविता आपके सामने प्रस्तुत है ” उम्र पर कविता ” :-

उम्र पर कविता

उम्र पर कविता

बचपन की सब ख्वाहिशें
छोटे मन में मचलती है।
पाकर लाड़ प्यार फिर
मस्ती में उछलती है।
पहुँच जाती है जवानी में
फिर आता है बुढ़ापा
ये उम्र है, रोज हाथ से
रेत सी फिसलती है।

छोटा या बड़ा हो सबकी
एक साथ ही बढ़ती है।
सूरज की रौशनी सी
हर शाम को ही ढलती है।
कर न गुरुर खुद पर
खुद भी ख़ाक हो जाएगा
ये उम्र है, रोज हाथ से
रेत सी फिसलती है।

मौत न जाने इस जग में
कब किसे निगलती है।
रंग बिरंगी ये जिंदगी
हर पल ही बदलती है।
एक सा हश्र होता है
गरीब और अमीर का
ये उम्र है, रोज हाथ से
रेत सी फिसलती है।

सदभाव रखा जिसने
इज्ज़त उसको मिलती है।
जो न अच्छा बोलता
उस से दुनिया जलती है
सत्कर्म की राह चलो तो
बड़े आराम से कटती है
ये उम्र है,रोज हाथ से
रेत सी फिसलती है।

पढ़िए :- कविता “कल आज और कल”


harish chamoliमेरा नाम हरीश चमोली है और मैं उत्तराखंड के टेहरी गढ़वाल जिले का रहें वाला एक छोटा सा कवि ह्रदयी व्यक्ति हूँ। बचपन से ही मुझे लिखने का शौक है और मैं अपनी सकारात्मक सोच से देश, समाज और हिंदी के लिए कुछ करना चाहता हूँ। जीवन के किसी पड़ाव पर कभी किसी मंच पर बोलने का मौका मिले तो ये मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी।

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