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पिता पर कविता :- पिता क्या है | पिता के महत्व पर एक सुंदर कविता


हमारे जीवन में हम हर चीज की एक परिभाषा पढ़ते हैं।  ये परिभाषाएं तथ्य पर आधारित होती हैं। लेकिन भारत ऐसा देश है जहाँ कुछ परिभाषाएं भावनाओं से बन जाती हैं। जैसे प्यार की परिभाषा, भावनाओं की परिभाषा आदि। ऐसी ही एक परिभाषा मैंने भी “ पिता क्या है ?” के रूप में पिता पर कविता लिखने की कोशिश की है। पिता जो हमारी जिंदगी में वो महान शख्स है जो हमारे सपनों को पूरा करने के लिए अपनी सपनो की धरती बंजर ही छोड़ देता है। आइये पढ़ते हैं उसी पिता के बारे में :-

पिता पर कविता – पिता क्या है?

पिता पर कविता :- पिता क्या है

पिता एक उम्मीद है, एक आस है
परिवार की हिम्मत और विश्वास है,
बाहर से सख्त अंदर से नर्म है
उसके दिल में दफन कई मर्म हैं।

पिता संघर्ष की आंधियों में हौसलों की दीवार है
परेशानियों से लड़ने को दो धारी तलवार है,
बचपन में खुश करने वाला खिलौना है
नींद लगे तो पेट पर सुलाने वाला बिछौना है।

पिता जिम्मेवारियों से लदी गाड़ी का सारथी है
सबको बराबर का हक़ दिलाता यही एक महारथी है,
सपनों को पूरा करने में लगने वाली जान है
इसी से तो माँ और बच्चों की पहचान है।

पिता ज़मीर है पिता जागीर है
जिसके पास ये है वह सबसे अमीर है,
कहने को सब ऊपर वाला देता है ए संदीप
पर खुदा का ही एक रूप पिता का शरीर है।


पिता पर कविता का विडियो देखें :-

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धन्यवाद।

84 Comments

  1. संदीप जी ! आपने पिता के सन्दर्भ एक अच्छी रचना को जन्म दिया हैं ……आप हमारी बेवसाइट पर आकर एक बार नई रचना पिता के ऊपर पढ़कर अपने विचार हम तक पँहुचायें ।
    हमारी बेवसाइट हैं Merajazbaa.com हमें उम्मीद हैं आपका सानिध्य हमेशा मिलता रहेंगा ।

  2. समाज में परिवर्तन में आप जैसे कवियों की महत्वपूर्ण भूमिका सदियों से रही है ।
    आज हमारा पुरुष समाज एकतरफा महिला कानून के बोझ से दबा महसूस कर रहा है ।
    इस नारी शशक्तिकरण की होड़ में बुजुर्गो के खिलाफ अत्याचार बढ़ता जा रहा है । उनके सम्मान में कमी आई है । पुरुष हर तरफ कानून के मार से दंश झेल रहा है।
    चाहे झूठे दहेज़ के मुक़दमे हो, घरेलु हिंसा,बलात्कार या छेड़छाड़ का मुकदमा, इसमें झूठे शिकायतों की तादात ज्यादा है ।
    हमारा न्यायालय भी पंगु हो गया है। न्याय मिलने में सालो साल लग जाते हैं ।
    कृपया कर इस विषय पर भी कविता लिखे।
    बेटी और बहु की रट लगाते कही हम पुत्र और बेटे को दरकिनार न करदे उनके अधिकारो से वंचित न करें ।

  3. संदीप जी आपकी कविता ने खासकर पिता पर लिखी गयी कविता । समाज में महिला उत्थान के जमाने में एक पिता की भूमिका को पुनः जागृत करने का काम किया है ।

  4. पिता रोटी कपडा और मकान है
    पिता नन्हें से परिंदे का बड़ा सा आसमान है
    पिता है तो माँ की बिंदी और सुहाग है
    पिता है तो सारे सपने अपने है
    पिता है तो बाजार के सारे खिलौने अपने है………..

    1. श्याम जी ये तो आपने बहुत बड़ी बात कह दी। मैं इतना काबिल कहाँ की मेरी रचना किसी संध्या भजन का हिस्सा बने। आपको यह रचना अच्छी लगी वही मेरे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है। आपका अति धन्यवाद।
      इसी तरह हमारे साथ बने रहें।

  5. पिता जी पर समर्पित बहुत ही सुन्दर पंक्तियां संजोए सर आपने
    सर्वप्रथम आपको बहुत बहुत धन्यवाद
    एवम काश कि ऐसा होता कि हर इंसान के मन मे पिता एवं माता के प्रति अपना फर्ज समझते हुए उनके प्रति इतनी आदर होती कि वृद्धा आश्रम की आवश्यकता ना होती

    1. धन्यवाद दिनेश सिदार जी….. बिल्कुल सही बात कही आपने। लेकिन आज कल दोष माँ बाप का भी है जो अपने बच्चों को पर्याप्त समय नहीं देते और उनके बीच दूरियां बढ़ जाती हैं।

    1. सबसे पहले आपको बहुत-बहुत बधाई हो। पिता तो भगवान की एक ऐसी देन है जो हमारे जीवन में साथ रहकर हमे सद्मार्ग पर चलने और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। आशा है आपको भी अपने पिता की महानता की अनुभूति हो गयी होगी। एक बार फिर से आपको बधाई व ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद।

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