Home » हास्य » हास्य कहानी और नाटक » बुरा न मानो होली है | होली के रंग लल्लन के संग – होली पर हास्य व्यंग्य

बुरा न मानो होली है | होली के रंग लल्लन के संग – होली पर हास्य व्यंग्य

by Sandeep Kumar Singh
6 minutes read

बुरा न मानो होली है
किसी जमाने में जमकर होली खेली जाती थी। “होली आई रे कन्हाई रंग बरसे सुना दे मुझे बाँसुरिया..” जैसे कई गाने चला करते थे। “रंग बरसे भीगे चुनर वाली…” तो सबकी जुबान पर चढ़ गया था। डीडी नेशनल पर आने वाले चित्रहार और रंगोली  में तो होली वाले सप्ताह में बस होली के गाने ही चला करते थे। सब बुरा न मानो होली है का राग अलापते थे,  पर बदलते समय के साथ होली का रंगरूप भी बदल चुका है। आज भी होली आने पर पुरानी यादें ताज़ा हो जाती हैं।

बुरा न मानो होली है

एक बार की बात है गाँव में सारे बच्चे होली खेल रहे थे। पता चला किसी ने लल्लन काका की नई सफ़ेद धोती पर पिचकारी मार दी। नई धोती पर रंग देख लल्लन काका ने आव देखा ना ताव उस लड़के को पीटने ही वाले  थे कि सामने से आवाज आई, ” बुरा न मानो होली है ।” और तपाक से एक बाल्टी लाल रंग लल्लन काका के ऊपर पड़ा।

अचानक हुए इस हमले से लल्लन काका सकपका गए। उन्हें ऐसा लगने लगा जैसे उनके मोहल्ले में रंग डालने वाले आतंकवादियों का हमला हो गया हो। पहले से ही इस हमले का शिकार हुए लल्लन काका का पारा सातवें छोड़ आठवें आसमान पर जा पहुँचा, और जवाबी कार्यवाही करते हुए लल्लन काका बोले-

“ई कौन ससु……”। सामने खड़ी पंडिताइन भाभी को देख बाकी के शब्द होंठो तक आते-आते उसी रास्ते से सांस के साथ फेफड़ों तक पहुँच गए। गुस्सा सातवें आसमान से उतर पाताल लोक में चला गया था। इसका एक फ़ायदा तो हुआ उस मासूम बच्चे को भागने का मौका मिल गया। फिर भी अपना गुस्सा निकालने का दिखावा करने के लिये एक बच्चे का कान पकड़ा तो आवाज आई-

“बापू, आ….. बापू मैं हूँ कल्लन। आपका बिटवा।”

“ससुर के नाती तू यहाँ क्या कर रहा है? इन मोहल्ले के लड़कों के साथ तेरा भी दिमाग ख़राब हो गया है। अभी पंडिताइन जी पर रंग पड़ जाता तो ?” झूठा रूआब झाड़ते हुए लल्लन काका ने अपने बेटे को फटकार लगायी।

“अरे छोड़ो लल्लन जी। होली है खेलने दो काहे गुस्सा करते हैं।” पंडिताइन जी ने मुस्कुराते हुए कहा।

बस लल्लन काका तो जैसे स्वर्ग में पहुँच गए थे। होली के उड़ते रंग उन्हें देवलोक का अनुभव करा रहे थे। पंडिताइन भाभी किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थीं। हँसते हुए लल्लन काका बोले-

“ऐसी बात है तो थोड़ा रंग हमसे भी लगवा लो भाभी जी।”

और अपने हाथ में गुलाल लेकर जैसे ही गाल की तरफ बढ़ाया।

“बड़ी मटरगस्ती सूझ रही है बुढ़ऊ। ढलती उम्र में दिमाग भी पगला रहा है।’ लल्लन काका को रंग की वजह से चेहरा तो ना दिखा, पर आवाज से वो अपनी धर्मपत्नी को पहचान गए थे। बस फिर क्या था चेहरे के रंग ऐसे बदलने लगे की होली के रंग फीके पड़ गए। बस फिर तो चाची ने ऐसा रंग लगाया था की चाचा 3 दिन तक दर्द के मारे कराहते रहे। बस फिर क्या सारा गाँव लल्लन चाचा को छेड़ने लगा,”थोडा रंग हमसे भी लगवा लो।”

रंगों का भी अपना महत्व है। होली का दिन तो बदनाम है वरना रंग तो लोग सारा साल खेलते हैं। और सब से ज्यादा रंगों के साथ खेला जाता है महिलाओं के ब्यूटी पार्लर में। क्रेज़ तो कुछ ऐसा है के की पार्लर के अंदर श्याम रंग महिला जाती है और रंग लग जाने के बाद श्वेत वर्ण हो जाती है। दुनिया ने तो रंगों का प्रयोग ही नये ढंग से कर दिया है। कई चीजों को बेवजह ही रंग फ़ैलाने के लिए बदनाम किया हुआ है। कहते हैं “हींग लगे ना फिटकरी रंग भी चोखा होए।”

पर आज तक कभी सुना या देखा नहीं की किसी ने रंग चढ़ाने के लिए हींग या फिटकरी का इस्तेमाल किया हो। ऐसा सब कुछ चलता रहता है। मुख्य तथ्य तो ये है की हमें प्यार के रंगो की होली खेलनी चाहिए और सबके दिलों पर अपने प्यार और आदर का रंग चढ़ाना चाहिए।

आशा करते हैं आपकी होली आनंददायी हो।

रहे कभी ना खाली
खुशियों से भरी रहे झोली,
अप्रतिम ब्लॉग की तरफ से
आप सब को हैप्पी होली।
बुरा न मानो होली है

हमारा यूट्यूब चैनल सब्सक्राइब करें :-

apratimkavya logo

धन्यवाद।

आपके लिए खास:

Leave a Comment

* By using this form you agree with the storage and handling of your data by this website.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More

Adblock Detected

Please support us by disabling your AdBlocker extension from your browsers for our website.