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किस्मत पर एक कविता – मुजरा किस्मत का | Kismat Poem In Hindi

by Sandeep Kumar Singh
4 minutes read

( Kismat Poem In Hindi ) किस्मत पर एक कविता ” मुजरा किस्मत का  ” में  पढ़िए कैसे एक इन्सान की किस्मत उसे सही होने पर गलत साबित कर देती है

किस्मत पर एक कविता

किस्मत पर एक कविता - मुजरा किस्मत का

तवायफ बन चुकी किस्मत
मुजरा सरेआम करती है।
जितना संभालूँ मैं खुद को ये
मुझे बदनाम करती है।
अमीरों के कोठों पर
चलती है उनकी खातिर।
मेरे कहने पे न मेरा
इक भी काम करती है।
तवायफ बन चुकी किस्मत
मुजरा सरेआम करती है।

मेरी हर हरकत जो होती है
हिमाकत उनको लगती है।
हिमायत उनकी कर दूँ
तो भलाई मेरी होती है।
उनके लिये करता तो
सब काम बनते हैं।
अपने लिए सोचूँ तो
हर बात बिगड़ती है।
तवायफ बन चुकी किस्मत
मुजरा सरेआम करती है।

है डर हार ना जाऊं
जंग जिंदगी से मैं।
पाऊँगा खुदा इक दिन
अपनी बंदगी से मैं।
हैं जो हालात बदलेंगे
जारी कोशिशें जो हैं।
हिम्मत के आगे कहाँ
मुसीबतें ठहरती हैं।
तवायफ बन चुकी किस्मत
मुजरा सरेआम करती है।

किस्मत पर एक कविता आपको कैसी लगी ? अपने विचार हम तक जरूर पहुंचाएं

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1 comment

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Ahan मार्च 20, 2023 - 10:46 अपराह्न

Mai apki ek line mare ek song ke liye use karna tha… Atcha laga …. Plz use Karu sir

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