Home » विविध » विद्यार्थियों में तनाव के कारण :- विद्यार्थी जीवन में मानसिक तनाव की त्रासदी

विद्यार्थियों में तनाव के कारण :- विद्यार्थी जीवन में मानसिक तनाव की त्रासदी

by ApratimGroup
10 minutes read

विद्यार्थियों में तनाव के कारण :- मानव जीवन की भूमिका बचपन है तो वृद्धावस्था उपसंहार है। युवावस्था जीवन की सर्वाधिक मादक व ऊर्जावान अवस्था होती है। इस अवस्था में किसी किशोर या किशोरी को उचित अनुचित का भलीभांति ज्ञान नहीं हो पाता है और शनै: शनै: यह मानसिक तनाव का कारण बनता है। यही विद्यार्थी जीवन का कटु सत्य है। मानसिक तनाव का अर्थ है मन संबंधी द्वंद्व की स्थिति। आज का किशोर, युवावस्था में कदम रखते ही मानसिक तनाव से घिर जाता है।

विद्यार्थियों में तनाव के कारण

विद्यार्थियों में तनाव के कारण

इन घटनाओं को पढ़िए –

1. कोटा मे कोचिंग मे पढाई कर रहा छात्र अपने पिता को लिखता है – माफ़ करना पापा, हम आपके सपने को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। अपने भाई को सलाह देता है कि वह खूब पढाई कर माँ-पापा के सपने को साकार करे, इसके बाद वह कूद कर जान दे देता है।

2. दिल्ली मे दो भाई कमरे बंद कर मोबाइल पर गेम खेलते -खेलते इतने डिप्रेस्ड हो गए की उनेह कुछ पता ही नहीं चला। न खाना खाया, न पानी पिया, पैंट मे ही पेशाब होता रहा, लेकिन उन्हें इसका आभास तक नहीं हुआ।

3. रांची मे दस साल के एक छात्र ने राज्य के मुख्यमंत्री के नाम सन्देश लिखा – ममा कहती है खेलो, हम कहाँ खेलें, खेल का मैदान कहाँ बचा है? आप जहाँ (जमशेदपुर) में रहते थे, खेलते थे, वहां मैदान था, हम रोड पर खेलते हैं तो गाड़ी और घरों का शीशा टूटता है, मार पड़ती है। हम कैसे खिलाड़ी बनेंगे। खेल के मैदानों पर कब्ज़ा कर लिया है, बताइए हम सब क्या करें? ये तीनों घटनाएँ समाज को बैचैन करने वाली हैं।

घटनाएँ सच हैं, बच्चे तनाव मे हैं उनका मासूम बचपन तो पहले ही बस्ते के बोझ तले मुरझा जाता है। ऊपर से किशोरावस्था मे आते ही करियर को लेकर मानसिक तनाव शुरू हो जाता है। हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि ज्यादातर माँ-बाप अपने बच्चों को इंजीनियर ( वह भी आई आई टी से ) बनाना चाहता है, डॉक्टर बनाना चाहता है। कई माता-पिता तो बच्चों पर दवाब बनाते हैं।

बच्चे क्या बनना चाहते हैं कोई नहीं पूछता। अपनी इच्छा उन पर लाद देते हैं। यह नहीं देखते की बच्चे मे कुव्वत है या नहीं, इच्छा है या नहीं। जबरन डाल देते हैं कोचिंग में। नतीजा एक दो प्रयास के बाद यदि वह सफल नहीं हुआ तो वह निराश होकर यह समझ लेता है कि सब कुछ ख़त्म हो गया और जान दे देता है या डिप्रेशन का शिकार हो जाता है। रोज ऐसी घटनाएँ घट रही हैं।



बच्चों मे धैर्य नहीं है अधिकांश माता-पिता बच्चों को समय नहीं दे पाते। दोनों नौकरी करते हैं, उनकी सारी इच्छाएं तो पूरी कर देते हैं पर उनके पास बच्चों से बात करने का समय ही नहीं होता। ऐसे में बच्चा अपनी अलग दुनिया बना लेता है उसका मानसिक विकास भी प्रभावित होता है। इन सबके बावजूद माता-पिता यही अपेक्षा रखते हैं कि बच्चा आई आई टी से इंजीनियरिंग करे या डॉक्टर बने।

ये बात सिर्फ मेडिकल या इंजीनियरिंग की ही नहीं है, छोटी कक्षाओं मे या 10वीं ,12वीं की परीक्षा मे असफल होने के बाद भी बच्चे अपनी जान दे रहें हैं, इन बच्चों को बचाना हम सभी का दायित्व है। आज 12वीं में अगर बच्चा 98 या 99 प्रतिशत नंबर नहीं लाया तो उसे किसी अच्छी यूनिवर्सिटी मे एडमिशन मिलना नामुमकिन हो जाता है। माँ-बाप के साथ साथ बच्चा भी निराश हो जाता है कि अब उसका भविष्य क्या होगा?

ऐसी बात नहीं है कि एक परीक्षा मे फेल होने के बाद सब कुछ खत्म हो जाता है या सिर्फ आई आई टी करने से ही भविष्य बन सकता है। देश के पूर्व राष्ट्रपति और प्रसिद्ध वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम ने तो आई आई टी से पास नहीं किया था। रसायन मे नोबेल प्राइज़ विजेता वेंकेटरमण राधाकृष्णन ने भी आई आई टी की परीक्षा पास नहीं की थी। जेइइ मे फेल होने के बाद सत्या नडेला ने हिम्मत नहीं हारी और माइक्रोसॉफ्ट के सीइओ बने। ऐसे अनेकों उदाहरण हैं तो क्या उन्होंने इतिहास नहीं रचा।

सोचिये ,अगर ये सभी निराश होकर घर बैठ जाते या डिप्रेशन मे चले जाते तो क्या इतिहास रच पाते? निराश होकर जान देना, डीप्रेशन मे जाना किसी समस्या का समाधान नहीं है, दरअसल बच्चे करे तो क्या करें, किससे बात करे, कोई उनकी सुनता नहीं, घर मे माता -पिता नहीं सुनते, दोनों कमाने मे लगे रहते हैं। बच्चे की हर जिद को पूरा कर देते हैं। कोचिंग भेज देते हैं और अपनी जिम्मेदारी से मुक्ति पा लेते हैं।

सच तो ये है अच्छे और बुरे मे फर्क कोई बता नहीं पाता, स्कूल के शिक्षक काम से काम रखते हैं। आज के समय मे बच्चे मोबाइल और टीवी के सहारे घंटों उसमे डूबे रहते हैं और यही उनके जीवन को ख़राब कर रहा है। इसके लिए माता-पिता को बच्चों पर ध्यान देने के साथ साथ समय भी निकलना पड़ेगा जिससे माता-पिता और बच्चों के बीच अच्छा तालमेल हो सके जो की विकास के लिए बहुत जरुरी है।

याद कीजिये आज से 20-25 साल पहले ये हालात नहीं थे, स्कूली बच्चों पर तनाव नहीं था, बच्चे स्कूल से आकर बैग पटक कर खेलने निकल जाते थे, खेलते भी थे, लड़ते -झगड़ते भी थे, तनाव वहीँ निकल जाता था, बच्चे शारीरिक और मानसिक तौर पर मजबूत होते थे। हर समस्या से जूझते थे, हार नहीं मानते थे, यही कारण था उन दिनों आत्महत्या की घटनाएँ बहुत कम घटी थीं।

अब समय आ गया है माता-पिता ,शिक्षक सभी बच्चों की स्थिति को समझें, उन पर उतना ही भार लादें जितना वो सह सकें। सुबह पांच बजे उठ कर अगर कोई बच्चा पहले स्कूल, फिर होमवर्क, उसके बाद टयूशन मे लगा रहेगा तो वो खेलेगा कब? पढाई आवश्यक है लेकिन इसके साथ खेल और मनोरंजन भी उसके विकास के लिये आवश्यक है। इन बच्चों के बचपन को बचाना होगा, उनके मन मे क्या चल रहा है, उनकी बातों को सुनना होगा, उनके तर्क और उनकी परेशानियों को समझना होगा, उनकी क्षमता की पहचान करनी होगी, जबरन थोपने से किसी का भला नहीं होने वाला यह विद्यार्थी जीवन का कटु सत्य है।



मानसिक रूप से मजबूत करने की जिम्मेदारी माँ-बाप की है। किशोरावस्था बच्चों के मानसिक और शारीरिक बदलाव की उम्र होती है। पढाई का दवाब होता है 10वीं के बाद 12वीं मे एडमिशन या 12वीं के बाद तकनीकी शिक्षा या अन्य शिक्षा में होता है, पुराने दोस्त छूटते हैं, नए दोस्त बनते हैं, स्थान बदलता है, शरीर मे कई तरह के परिवर्तन आते हैं सभी बद्लाव् का असर बच्चों पर दिखता है। ऐसे समय मे परिवार के सहयोग की जरूरत होती है।

परिवार को बच्चों की क्षमता और रूचि को समझना होगा। बच्चों के रिजल्ट के साथ साथ पढाई को भी समझना होगा। केवल एकतरफा दवाब देने से बच्चों की मनोस्थिति बिगड़ती है, तनाव बढ़ता है जिसके फलस्वरूप कई बार बच्चे गम्भीर मानसिक बीमारी की चपेट मे आ जाते हैं। मह्त्वकांक्षा से छिनता बचपन उपभोक्तावाद के इस युग मे बच्चों को चाहे जितनी खुशियाँ मिल जाएँ, उनका बचपन अब उनके पास नहीं रहा।

आज के समय मे कई अभिवावक तो जैसे स्कूली शिक्षा को अपनी प्रतिष्ठा का विषय बना लेते हैं। जो बच्चों के 12वीं बोर्ड की परीक्षा के बाद कि प्रवेश परीक्षा तक आते -आते अपनी चरम सीमा पर पहुँच जाती है। आने वाले कल ने आज के जीवन के रंग फीके कर दिए हैं। पढ़ -लिख कर आगे निकलने की होड़ मे बचपन का रास्ता ही परेशानियों से भर गया है। परीक्षाओं मे बेहतर अंक लाने, 90 प्रतिशत पार करने के चक्कर मे मानसिक तनाव झेलता किशोर अपने जीवन कि दिशा तय नहीं कर पाता।

इन मानसिक तनाव से मुक्ति का सबसे महत्वपूर्ण उपाय उसका अपना विवेक है। संस्कारवान शिक्षा दीक्षा तथा नैतिकता के माध्यम से उसका रास्ता प्रशस्त होता है। इसके लिए दृढ़संकल्प, अदम्य साहस, अथक परिश्रम, धैर्य, यथार्थ को ज्ञान, सहनशीलता और सबसे अधिक स्वावलंबन, आत्म निर्णय एवं आत्मविश्वास की भी आवश्यकता होती है।

इन सबकी जिम्मेदारी माता-पिता पर होती है कि वो अपने बच्चे के भविष्य का निर्माण कैसे करना चाहेंगे? उसका सही मार्गदर्शन करना हर माता -पिता का कर्तव्य है ताकि बच्चे का सही विकास हो सके। किसी दूसरे के बच्चे से अपने बच्चे की तुलना न करे। हर बच्चा ईश्वरीय तोहफे से परिपूर्ण है जरूरत है तो उसे पहचान कर सही दिशा प्रदान करने की।



उम्मीद है की ये लेख ” विद्यार्थियों में तनाव के कारण ” पढ़ कर बचों और उनकी पढाई के प्रति आपका नजरिया कुछ तो जरूर बदला होगा। इस लेख के बारे में अपने विचार और अपनी जिंदगी के अनुभव हमसे अवश्य साझा करें। बच्चों की जिंदगी बदलने के लिए आप भी एक कदम जरूर बढ़ाएं।

पढ़िए विद्यार्थी जीवन से जुड़ी अप्रतिम ब्लॉग के ये रचनाएं :-


लेखिका रेनू सिंघल के बारे में:

renu singhal

मेरा नाम रेनू सिंघल है । मैं लखनऊ मे रहती हूँ। मुझे बचपन से लिखने का शौक है । कहानियां ,कवितायें, लेख , शायरियाँ लिखती हूँ पर विवाह के बाद पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते इस शौक को आगे नही बढ़ा पायी।

अब मैं लेखन की दिशा मे कार्य करना चाहती हूँ । अपनी खुद की एक पहचान बनाना चाहती हूँ जो आप सबके के सहयोग से ही संभव है। जीवन के प्रति सकारात्मक सोच और स्पष्ट नज़रिया रखते हुए अपनी कलम के जादू से लोगो के दिलों मे जगह बनाना मेरी प्राथमिकता है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप सभी का सहयोग अवश्य मिलेगा। धन्यवाद।

आपके लिए खास:

Leave a Comment

* By using this form you agree with the storage and handling of your data by this website.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More

Adblock Detected

Please support us by disabling your AdBlocker extension from your browsers for our website.