Home » कहानियाँ » मोटिवेशनल कहानियाँ » पतंग – एक बदलती ज़िन्दगी | सीख देती हिंदी लघु कहानी | Short Hindi Story

पतंग – एक बदलती ज़िन्दगी | सीख देती हिंदी लघु कहानी | Short Hindi Story

by Sandeep Kumar Singh
10 minutes read

अकसर जिंदगी पतंग की तरह है, जिसमे रोजाना ही हमारे साथ छोटी-मोटी घटनाएं होती रहती हैं। जिनका हमारे जीवन में बहुत अहम स्थान होता है। ये घटनाएं हमारे जीवन के लिए अच्छी होती हैं अगर हम इन छोटी-छोटी घटनाओं से सीख लेकर आगे आने वाले समय में अपने अनुभवों का प्रयोग करें। जिस से हम अपनी ही की गयी गलती को दोहराते नहीं और आसानी से अपना जीवन सहज बना लेते हैं।

जिंदगी में खुश रहने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है संतुष्ट होना। अगर आप अपने जीवन में प्राप्त की गयी किसी चीज से संतुष्ट नहीं हैं तो उसे अपनी मेहनत से बदलने की कोशिश करें या फिर जो है उसमें खुश रहें। क्योंकि कई बार जब हम दूसरों की चीजें देख कर लोभ के शिकार हो जाते हैं।

जिस से हमारा इतना नुकसान हो जाता है कि हमें वो चीज तो नहीं मिलती साथ ही हम अपनी वाली चीज से भी हाथ गंवा बैठते हैं। और जब तक हमें एहसास होता है बहुत देर हो चुकी होती है। लेकिन समय रहते संभल जाने पर हम काफी कुछ बदल सकते हैं और अपनी जिंदगी को सुखद बना सकते हैं। आइये पढ़ते हैं एक ऐसी ही सीख देती हिंदी लघु कथा जो हमें इसी प्रकार की शिक्षा देती है।

(नोट :-  मेरी ये कहानी वास्तविक जीवन पर आधारित है। जिसके पात्र और घटनाएं काल्पनिक हैं। )

⇒पढ़िए- नये साल का उत्सव – नव वर्ष की कहानी | Nav Varsh ki Kahani

पतंग

पतंग - एक बदलती ज़िन्दगी

बसंत ऋतु आने वाली थी। चारों ओर हरियाली अपने पाँव पसार रही थी। पौधों और पेड़ों में पत्तों और फूलों के अंकुर फूट रहे थे। सरसों के खेत में पीला रंग मानो कह रहा हो की सारी सृष्टि को अपने रंग में रंग लेगा। मौसम इतना सुहावना था की सूरज की किरण भी एक अद्भुत शांति प्रदान कर रही थी। सभी तरफ रंगों का मौसम चल पड़ा था। जो कि फाल्गुन में होली के बाद और भी बढ़ जाता। सभी के लिए ये ऋतु आनंददायी थी।

रविवार का दिन था। स्कूल में अवकाश होने के कारण गुड्डू सुबह से ही पतंग लेकर छत पर चढ़ गया था।
“गुड्डू बेटा नाश्ता कर लो। पतंग फिर उड़ा लेना।“
“आता हूँ माँ, बस पतंग उतार लूँ।”
माँ के बुलाने पर गुड्डू ने जवाब दिया।

गुड्डू पढ़ने में बहुत होशियार था। सिर्फ पढ़ाई ही नहीं वह हर काम में होशियार था। समझदार भी काफी था। इसके कारण थे उसके माँ-बाप और दादा-दादी जिन्होंने गुड्डू में संस्कार और अच्छे गुण कूट-कूट कर भरे दिए थे। उसमें एक ख़ास लगन थी सीखने की। हर बात में वो कुछ न कुछ अपने मतलब का सीख ही लेता था।

“दादा जी आज तो पतंग सूरज तक पहुंचा ही दूंगा।“
नाश्ता करते समय गुड्डू ने सामने बैठे दादा जी से कहा। तभी उसका भाई राजू बोला,
“सूरज तक पहुँचने से पहले ही तेरी पतंग जल जाएगी हा हा हा हा हा हा………”
“इरादे मजबूत हों तो सूरज क्या चीजें भगवान तक भी पहुँच जाती हैं।“

दादा जी ने गुड्डू का पक्ष लेते हुए कहा तो गुड्डू ने नाश्ता ख़त्म करते हुए सबसे कहा,
“गुड्डू तो चला पतंग को आसमान में सैर करवाने…….”

सूरज सिर के ऊपर पहुँचने वाला था। गुड्डू पतंग उड़ा रहा था। सभी छत पर आ गए थे। सुबह मौसम आज कुछ ठंडा था। इसलिए धूप अच्छी लग रही थी। राजू भी गुड्डू के पास खड़ा था। उसे पतंग उड़ाने नहीं आती थी लेकिन वो गुड्डू की हौसला अफजाई जरूर करता था।

दादा जी वहीं पास में बैठ कर अख़बार पढ़ रहे थे। दादी आँखें बंद कर के धूप का आनंद ले रही थीं। माँ रसोई में जूठे बर्तन साफ़ कर रही थीं।
“गुड्डू वो देख पतंग आ रही है।“
अचानक राजू जोर से चिल्लाया। गुड्डू का ध्यान पतंग की तरफ हो गया। वो पतंग पास आ रही थी। इतनी करीब आ चुकी थी कि गुड्डू के पास उसकी डोर लटक रही थी।

“गुड्डू पकड़ डोर तेरे पास है।“
“पकड़ता हूँ भइया। ये..ये…ये…..आ………….”
“गुड्डू…….”
दादा जी और दादी जी ने तुरंत गुड्डू की ओर देखा। लेकिन वो वहां नहीं था।
“गुड्डू बेटा….”

दादा जी चिल्लाये। गुड्डू की माँ नीचे से आवाज सुन कर ऊपर आ चुकी थीं। सब ने छत से नीचे देखा तो गुड्डू गार्डन में गिरा था। माँ को ऐसा सदमा लगा कि वो वहीं बैठ गयीं। दादी जी माँ के पास उन्हें सँभालने के लिए रुक गयीं। दादा जी ने जाकर देखा तो गुड्डू बेहोश हो गया था।

“दादा जी, पिता जी।“
“अरे! बेटा होश आ गया तुम्हें।“
पिता जी ने कहा।
“मुझे तो पता ही नहीं चला ये सब हुआ कैसे। गुड्डू तुम नीचे कैसे गिर गए थे?”

दादा जी के इस सवाल पर गुड्डू ने राजू की तरफ देखा। राजू के चेहरे पर ऐसे भाव थे मानो वो डर रहा हो जैसे उसकी कोई चोरी पकड़ी जाने वाली हो। वो एक लाचार सी भावना लिए गुड्डू की तरफ देख रहा था। गुड्डू एक ही पल में सब समझ गया।

“दादा जी, पतंग सूरज के पास पहुँचाने का आईडिया शायद सूरज देवता को पसंद नहीं आया और उन्होंने मेरी आँखों में अपनी लाइट ऐसी भेजी की मेरी लाइट गायब हो गयी और जब वापस आई तो खुद को यहाँ पाया।“

“हा हा हा हा हा……. अब तो शैतानियां बंद कर नटखट।“
“ हाथ टूट गया है अब कैसे पतंग उड़ाएगा?”
दादा जी के बोलने के बाद पिता जी ने पूछा तो गुड्डू बोला,
“ राजू भइया हैं ना। क्यों राजू भइया?”

⇒पढ़िए- लघु कथा- बदलाव: The Need of Change in Our Education System

राजू अचानक हुए अपने नाम के जिक्र से थोड़ा सहम सा गया और हिचकिचाते हुए कहा,
“अ..अ… हां….. हाँ जरूर, तू ठीक तो हो जा पहले।“
गुड्डू छत से नीचे कैसे गिरा? इस बारे में सिर्फ गुड्डू, राजू और सूरज देवता (भगवन) ही जानते थे।

गुड्डू एक समझदार लड़का था। उसने सबको सच्चाई इसलिए नहीं बताई क्योंकि उसे पता था कि अगर राजू का नाम बता दिया गया तो घर वाले उस पर अपना गुस्सा उतारते। राजू और गुड्डू एक दूसरे पर जान छिड़कते थे। जब सब अस्पताल में गुड्डू के कमरे से बहार आये तो राजू गुड्डू से मिलने गया।

“थैंक यू भाई।“
“क्यों इमोशनल कर रहा है भाई? क्या सीख फिर तुमने?”
“आधी छोड़ पूरी को धावे.. न आधी मिले.. न पूरी पावे…”
“हा हा हा हा ……सही छोड़े हो।“
“छोड़े हो नहीं, पकड़े हो होता है”
“पर पकड़ तो पाये नहीं थे ना….”

हा हा हा हा हा……  हँसीं से कमरा भर गया। उस दिन दोनों भाइयों ने कसम खाई कि आज के बाद सिर्फ अपनी ही पतंग उड़ाएंगे। किसी और पतंग के पीछे नहीं भागेंगे। अपनी इच्छाओं पर काबू रखेंगे।

कुछ दिनों बाद जब गुड्डू ठीक हो गया तो उसे घर वापस लाया गया। उसके बाद वो कभी भी किस और पतंग के पीछे नहीं भागा।

मित्रों इसी प्रकार हम भी अपने पास जो चीजें हैं उनको छोड़ कर वो चीजें हासिल करना चाहते हैं जो किसी और के पास है और वो भी शॉर्टकट के जरिये। सफलता के रास्ते अकसर लंबे हुआ करते हैं। छोटे रास्ते तो सिर्फ भटकाने के लिए होते हैं कि हमने अपनी मंजिल हासिल कर ली। लेकिन वो मंजिल नहीं एक ऐसा वहम होता है जो हमें आगे बढ़ने से रोक देता है।

हम आगे तब ही बढ़ सकते हैं जब सही रास्ते पर चलेंगे। नहीं तो हमें भी गुड्डू की तरह परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। इतिहास में भी इन बातों का जिक्र है कि किस प्रकार कुछ मंत्रियों ने राजा बन ने के लालच में अंग्रेजों के साथ मिल कर अपने राजाओं को मरवा दिया या बंदी बना लिया और बाद में खुद अंग्रेजों के शिकार बने।

जीवन में कुछ हासिल करने के लिए सच्चाई और ईमानदारी का रास्ता ही उचित होता है। और इन रास्तों पर हम तब ही चल सकते हैं जब अपनी इच्छाओं पर काबू रखेंगे।

पढ़िए कुछ और शिक्षाप्रद कहानियां :-

आपको ये कहानी कैसी लगी और आपने इस कहानी से क्या सीख ली? अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखियेगा। आपके प्रोत्साहन से ही हमें लिखने की प्रेरणा मिलती है। कृपया हमें प्रोत्साहित कर प्रेरित करते रहें।

धन्यवाद

आपके लिए खास:

4 comments

Avatar
HindIndia अक्टूबर 24, 2016 - 6:38 अपराह्न

बहुत ही उम्दा …. very nice story .. in Hindi!! :) :)

Reply
Mr. Genius
Mr. Genius अक्टूबर 24, 2016 - 8:06 अपराह्न

धन्यवाद HindIndia….

Reply
Avatar
Techwithloud जून 4, 2016 - 5:31 अपराह्न

wa bhai bhohat badiya story he….thanks share karnekeliye….

Reply
Mr. Genius
Mr. Genius जून 4, 2016 - 8:12 अपराह्न

Thanks techwithloud……
bas aapka pyaar hi hai jo likhne ki prerna deta hai…

Reply

Leave a Comment

* By using this form you agree with the storage and handling of your data by this website.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More

Adblock Detected

Please support us by disabling your AdBlocker extension from your browsers for our website.