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होली पर निबंध – रंगों का त्यौहार, इतिहास और जानकारी | Holi Essay In Hindi

by Sandeep Kumar Singh
17 minutes read

होली पर निबंध में पढ़िए होली का इतिहास , कैसे शुरू हुआ होली में रंगों का उपयोग , अलग-अलग राज्यों में कैसे मनाई जाती है होली का निबंध में :-

होली पर निबंध

रंगों के त्यौहार होली पर निबंध – परिचय एक नज़र में।

होली एक ऐसा त्यौहार है जो सबको रंग-बिरंगा कर देता है और सब एक सामान हो जाते हैं। प्यार मोहब्बत को बढ़ाने और बुराई के अंत का यह त्यौहार बहुत ही रंगीला होता है। भारत में यह त्यौहार मुख्यतः हिन्दू धर्म के लोग मानते हैं। लेकिन भारत विविधताओं का देश है, यहाँ हर धर्म के व्यक्ति सारे त्यौहार मिल जुल कर मनाते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन सभी अपनी सारी कटुता भुला कर फिर से मित्रता कर लेते हैं। एक दूसरे के चेहरे पर रंग, गुलाल और अबीर लगाते हैं।

रंग-बिरंगी ये त्यौहार भारत के साथ साथ दुनिया भर के लोगो को आकर्षित करता है। लेकिन क्या आपको पता है, कब और क्यों मनाई जाती है होली ? क्या है इसका इतिहास और क्यों इस त्यौहार में रंगों का इस्तेमाल होता है? चलिए नही पता तो कोई बात नही, इसी सदर्भ में हमने होली से सम्बंधित जितनी जानकारी संभव हो सका आपके सामने पेश कर रहे है, होली पर निबंध ‘ नाम से इस लेख में।

होली पर निबंध - रंगों का त्यौहार, इतिहास और जानकारी | Holi Essay In Hindi

होली कब मनाई जाती है?

आगे बढ़ने से पहले चलिए ये जान ले की ये रंगों का त्यौहार होली कब मनाया जाता है। होली भारत में बहुत उत्साह से मनाया जाने वाला वसंत ऋतु का त्यौहार है। हिन्दू पंचांग के अनुसार होली फाल्गुन महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है। अंग्रेजी महीनों के हिसाब से होलिका दहन का समय २०१९ ( 2019 ) में 20 मार्च को है व 21 मार्च को होली है।

होली क्यों मनाई जाती है? होली के इतिहास के बारे में जानकारी

१. होलिका दहन की कहानी

भारतीय संस्कृति में होलिका दहन की कहानी का एक महत्वपूर्ण स्थान है। यह बहुत ही प्रसिद्ध कहानी है। प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नाम का एक राक्षस रहता था। वह बहुत ही पापी था। उसकी यह इच्छा थी कि सभी लोग उसे भगवान् की जगह पूजें। परन्तु विधाता को कुछ और ही मंजूर था। राक्षस हिरण्यकशिपु के पुत्र प्रह्लाद ने ही उसे भगवान मानने से इंकार कर दिया। भक्त प्रह्लाद इश्वर के नाम ही लेता था।

यह बात उस राक्षस को बिलकुल भी अच्छी न लगी। उसे लगा अगर उसका अपना पुत्र ही उसे प्रभु मानने से इंकार कर रहा है तो बाकी लोग क्या सोचेंगे। हिरण्यकशिपु की एक बहन थी जिसका नाम होलिका था। होलिका ने अपने तपोबल से यह वरदान प्राप्त किया था कि उसे आग न जला सके। उसने प्रह्लाद को मरने के लिए अपने भाई को यह सुझाव दिया की प्रह्लाद को उसकी गोद में बिठा कर आग में जला दिया जाए। जिसमें वह वरदान के कारन बच जाएगी और प्रहलाद का अंत हो जायेगा।

अब होलिका और प्रह्लाद को एक साथ बिठा कर जलाया गया तो प्रह्लाद इश्वर का नाम लेता रहा और बच गया। वहीं होलिका अपने वरदान का अनुचित उपयोग करने के कारन जल कर मर गयी। उस दिन से ये होली का त्यौहार अस्तित्व में आया। होलिका दहन का प्रचलन आज भी है और होली से एक दिन पहले होलिका दहन की रस्म निभाई आती है। और होलिका दहन के बाद एक दूसरे के चेहरे पर रंग लगाया जाता है।

२. पौराणिक कथाएँ

होलिका दहन के इलावा और भी कई पौराणिक कथाएं हैं। जिसमें राक्षसी ढुंढी, राधा कृष्ण के रास और कामदेव के पुनर्जन्म से भी जुड़ा हुआ है। कुछ लोगों का मानना है कि होली में रंग लगाकर, नाच-गाकर लोग शिव के गणों का वेश धारण करते हैं तथा शिव की बारात का दृश्य बनाते हैं। ऐसा भी माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन पूतना नामक राक्षसी का वध किया था।



३. ऐतिहासिक कहानियाँ

पौराणिक कथाओं में तो होली का वर्णन मिलता ही है। इसके साथ ही इतिहास में भी कई ऐसे शासक हुए हैं जो होली खेला करते थे। इसके प्रमाण मिलते हैं मुग़ल काल के इतिहास में। ऐसी कई तस्वीरें हैं जो इस बात की गवाही देती हैं कि होली सिर्फ हिन्दू ही नहीं अपितु मुसलामानों में भी उतनी ही प्रचलित रही है। अकबर-जोधाबाई से लेकर जहाँगीर-नूरजहाँ तक होली के शौक़ीन थे। ऐसा वर्णन मुग़ल इतिहास में मिलता है।

जहाँगीर के होली खेलने के प्रमाण अलवर संग्रहालय में चित्रों के रूप में आज भी हैं।  इतिहास में वर्णन है कि शाहजहाँ के ज़माने में होली को ईद-ए-गुलाबी या आब-ए-पाशी (रंगों की बौछार) कहा जाता था। अंतिम मुग़ल बादशाह बहादुर शाह जफ़र के समय में तो उनके मंत्री होली के दिन उन्हें रंग लगाने जाया करते थे।

कैसे इस त्यौहार का नाम होली पड़ा?

होली के पर्व की शुरुआत ऐसी न थी जैसा इसका आज का स्वरुप है। प्राचीन काल में जब परिवार  की सुख समृद्धि के लिए विवाहित औरतें पूर्ण चन्द्र की पूजा करती थीं।  वैदिक काल में इसे नवात्रैष्टि यज्ञ के नाम से जाना जाता था। उस यज्ञ में खेत के अधपके अन्न को दान करके प्रसाद लेने का विधान समाज में व्याप्त था।  उस समय अन्न को होला भी कहते थे। इसी कारन इस उत्सव का नाम होलिकोत्सव रखा गया।

भारतीय ज्योतिष के अनुसार चैत्र शुदी प्रतिपदा के दिन से नववर्ष का भी आरंभ माना जाता है। इस उत्सव के बाद ही चैत्र महीने का आरंभ होता है। अतः यह पर्व नवसंवत का आरंभ तथा वसंतागमन का प्रतीक भी है। इसी दिन प्रथम पुरुष मनु का जन्म हुआ था, इस कारण इसे मन्वादितिथि कहते हैं।

होली पर निबंध में जानिए होली में रंगों का उपयोग कैसे शुरू हुआ?

holi colors on plates

कहते हैं पूतना ने श्री कृष्ण को मारने का प्रयास किया। लेकिन श्री कृष्ण ने पूतना का ही वध कर दिया। पूतना वध के उपलक्ष्य में गोपियों और ग्वालों ने रासलीला की। इसके बाद सबने एक दूसरे के साथ रंग खेला। रंग खेलने कि शुरुआत श्री कृष्ण जी ने ही की थी।

कैसे मनाया जाता है होली का त्यौहार?

kaise manaya jata hai holi tyohar

होली दो दिनों का त्यौहार होता है, जिसमे प्रथम दिवस को सिर्फ होलिका दहन किया जाता है, जिसमे लकड़ियों और दूसरी जलाई जाने वाली चीजों का कुंड बना के जलाया जाता है। और साथ में नगाड़े बजाये जाते है। अगले दिन रंग खेलने का दिन होता है  जिसे धुरेडी भी कहते है।

होली के दिन सब सुबह से ही रंग खेलना शुरू कर देते हैं। एक दूसरे के चेहरे पर गुलाल, अबीर और रंग लगाये जाते हैं। चारों और हर्षोल्लास का माहौल ही नजर आता है। बच्चे पिचकारियों में रंग भर-भर कर एक दूसरे पर डालते हैं। यह कार्यक्रम दोपहर तक चलता है। उसके बाद सब नहा-धोकर विश्राम करते हैं। शाम के समय में सब लोग अपने जान-पहचान के लोगों से मिलने जाते हैं। आपस में मिठाइयाँ बांटते हैं। कहते हैं होली प्यार-मोहब्बत का त्यौहार है। इस दिन दुश्मन भी दुश्मनी भुला कर गले मिलते हैं।

होली के विशेष पकवान

 

वैसे तो होली का मुख्या पकवान गुझिया होता है। लेकिन इसके साथ और भी कई मीठे पकवान बनते हैं जिनमें मालपुआ, ठंडाई, खीर, कांजी वड़ा , पूरन पोली, दही बड़ा, समोसे, दाल भरी कचौडियां आदि बनाया जाता है। सारा दिन यही पकवान ही खाए जाते हैं और आने वाले मेहमानों का स्वागत भी इन्ही पकवानों से किया जाता है।

भारत के अलग अलग राज्यों में होली के विभिन्न रूप

लट्ठमार होली

राधा जी की जन्मस्थली बरसना की होली विश्व प्रसिद्द है। यह लट्ठमार होली  फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है।  माना जाता है कृष्ण जी होली मानाने के लिए अपने साथी ग्वालों के साथ बरसना जाया करते थे। वहां राधा जी की सखियाँ हंसी-ठिठोली करने के लिए उन पर लाठियां बरसाया करती थीं। जिस से बचने के लिए ग्वाले लाठीयों और ढालों का प्रयोग करते थे। वही परंपरा आज भी निभाई जाती है।

नंदगांव से ग्वाल बाल होली खेलने के लिए पिचकारियों और रंगों के साथ राधा रानी के गाँव बरसना जाते हैं। वहां की औरतें अपने गाँव के आदमियों पर लाठियां नहीं बरसातीं। लाठियों के बीच में एक दूसरे के ऊपर रंग भी डाला जाता है। धूम-धाम तो ऐसी होती है कि विदेशों से लोग आते हैं बरसना की ये लट्ठमार होली देखने।

पंजाब की होली – होला मोहल्ला

punjab ki holi hola mohalla

होली का महत्त्व जितना हिन्दुओं में है उतना ही दूसरे धर्म में भी है लेकिन कारन भिन्न हो सकते हैं। पंजाब में होली के अगले दिन एक बहुत ही विशाल महोत्सव होता है जिसे होला मोहल्ला के नाम से जाना जाता है।

होली के रूप को बदल कर होला मोहल्ला करने के पीछे दशम गुरु गोविन्द सिंह जी का एक खास उद्देश्य था। वह कारन यह था की आनंदपुर में होली को पौरुष के प्रतीक के रूप में मनाया जाता था। इसलिए होली का नाम स्त्रीलिंग से बदल कर पुल्लिंग कर दिया गया। आनंदपुर साहिब का स्थान सिखों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

होला मोहल्ला का उत्सव छः दिनों तक चलता है। जिसमे एक विशाल मेले का आयोजन होता है और उसके साथ ही निहंग अपने पौरुष और अपनी युद्ध कला का प्रदर्शन करते हैं। जुलूस तीन काले बकरों की बलि से प्रारंभ होता है। एक ही झटके से बकरे की गर्दन धड़ से अलग करके उसके मांस से ‘महा प्रसाद’ पका कर वितरित किया जाता है।

पांच प्यारे जुलूस का नेतृत्व करते हुए रंगों की बरसात करते हैं और जुलूस में निहंगों के अखाड़े नंगी तलवारों के करतब दिखते हुए बोले सो निहाल के नारे बुलंद करते हैं। यह जुलूस हिमाचल प्रदेश की सीमा पर बहती एक छोटी नदी चरण गंगा के तट पर समाप्त होता है।

इतना ही नहीं लोगों के विशाल लंगर का आयोजन किया जाता है।  यहाँ आये हुए लोगों के लिए विशाल लंगर का आयोजन होता है। पंजाब के कोने-कोने से लोग यहाँ मेला देखने आते है। इस मेले की शुरुआत स्वयं गुरु गोबिंद सिंह जी ने की थी।

बंगाल की दोल जात्रा चैतन्य महाप्रभु का जन्मदिन

होली से एक दिन पहले बंगाल में दोल यात्रा निकली जाती है। इस दिन महिलाएँ लाल किनारी वाली पारंपरिक सफ़ेद साड़ी पहन कर शंख बजाते हुए राधा-कृष्ण की पूजा करती हैं और प्रभात-फेरी (सुबह निकलने वाला जुलूस) का आयोजन करती हैं। भजन-कीर्तन किया जाता है। चैतन्य महाप्रभु द्वारा रचित राधा-कृष्णा संगीत ज्यादा सुना और गाया जाता है।

राधा कृष्णा की मूर्ती रख कर होली खेली जाती है। शान्तिनिकेतन में रबिन्द्रनाथ टैगोर द्वारा चलायी हुयी वसंत परंपरा आज भी चलती है। विश्वभारती विश्वविद्यालय में सभी लड़के और लड़कियां पारंपरिक तरीके से होली मनाते हैं। इस उत्सव में सभी अध्यापक व अन्य सदस्य भी हिस्सा लेते हैं।

भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में से एक चैतन्य महाप्रभु का जन्म दिवस भी इसी दिन बंगाल में मनाया जाता है।

मणिपुर की होली – याओसांग

फाल्गुन महीने के दिन मणिपुर में याओसांग नाम से एक त्यौहार मनाया जाता है। और सबसे रोचक बात यह है कि धुलेंडी वाले दिन को यहाँ ‘पिचकारी’ कहा जाता है। लेकिन ये याओसांग है क्या?

याओसांग है एक छोटी सी झोपड़ी। जी हाँ, छोटी सी झोपड़ी।  पूर्णिमा के अपर काल में यह झोपडी हर गाँव में मौजूद नदी व सरोवर के किनारे बनायी जाती है। इस झोपड़ी में चैतन्य महाप्रभु की मूर्ती स्थापित की जाती है। पूजा-अर्चना के बाद इस होपड़ी को अग्नि देव के हवाले कर दिया जाता है।

सबसे रोचक बात यह है कि इस झोपडी में लगने वाली सामग्री 7 से 13 वर्ष के बच्चे आस-पास के घरों से चोरी कर के लाते हैं। इसकी राख को माथे पर लगाया जाता है और कुछ लोग इसे घर भी लेकर जाते हैं। उसे बाद रंगों से सारा माहौल रंग-बिरंगा हो जाता है। बच्चों द्वारा घर-घर जाकर खाने-पीने की चीजें इकट्ठी की जाती हैं। इन चीजों को एकत्रित कर विशाल सामूहिक भोज का आयोजन किया जाता है।

महाराष्ट्र की होली – रंग पंचमी

महाराष्ट्र में होली के बाद भी रंग खेलने की परम्परा है। यह त्यौहार वहां पंचमी के दिन मनाया जाता है। लेकिन इस होली की ख़ास बात यह है कि इसमें बस सूखा गुलाल ही प्रयोग किया जाता है। कई स्वादिष्ट पकवान बनाये जाते हैं। जिनमें पूरनपोली नाम का पकवान अवश्य होता है। मछुवारे अपनी मस्ती बस्ती में नाचते-गाते और मौज मानते हैं। एक दुसरे से मिलने उनके घर जाते हैं।

गोवा की होली – शिमगो

वसंत के आगमन के स्वागत में गोवा के लोग रंगों से खेलते हैं। रंगों के इस खेल को कोंकणी भाषा ( जो कि गोवा की भाषा है ) में शिमगो या शिमगोत्सव कहते हैं।  इस दिन लोग भोजन में शगोटी ( तीखी मुर्गी या मटन ) खाते हैं। यहाँ के उत्सव में ख़ास बात होती है एक विशालकाय जुलूस में।

पंजिम का यह विशालकाय जुलूस अपनी मंजिल पर पहुँच कर सांस्कृतिक कार्यक्रम में परिवर्तित हो जाता है। इस कार्यक्रम में साहित्यिक, सांस्कृतिक और पौराणिक नाटक व संगीत का मंचन किया जाता है। लेकिन इसमें कोई धर्म या जाति बंधन नहीं होता।

तमिलनाडु की होली – कमन पोडिगई

प्राचीन काल में देवी सती के मृत्युलोक चले जाने के बाद भगवान् शंकर को बहुत क्रोध आया और वे व्यथित हुए मानसिक शांति की  प्राप्ति के लिए उन्होंने ध्यान मुद्रा लगा ली। कई वर्षों पश्चात पर्वत राज की पुत्री पार्वती शिव को अपने वर के रूप में पाने के लिए तपस्या करने लगी। लेकिन बिना प्रभु शंकर के ध्यान से बहार आये ये संभव न था। अतएव सबने मिलकर विचार किया की काम देव को यह कार्य सौंपा जाए।

कामदेव ने अपने कार्य की पूर्ती के लिए भगवान् शिव पर कामबाण छोड़ दिया। तब एक बार फिर क्रोध में आए शिव जी के तीसरे नेत्र से कामदेव जल कर भस्म हो गए। लेकिन बाण तो असर कर चुका था। इस लिए शंकर भगवाना और देवी पार्वती जी का विवाह हो गया। कामदेव की पत्नी रति के विलाप के कारन शिव जी ने काम देव को दुबारा जीवन दिया।

वह दिन होली का ही दिन था। रति के विलास को आज भी संगीत के रूप में गाया जाता है। ऐसा मन जाता है की काम देव इस दिन भस्म होते हैं। इसलिए आग में चन्दन की लकडियाँ डाली जाती हैं जिससे कामदेव को भस्म होने में कोई तकलीफ न हो। और उसके बाद कामदेव के पुनः जीवित होने पर रंगों का त्यौहार मनाया जाता है।

अन्य राज्यों की होली

छत्तीसगढ़ में होली के दिन फाग गीत का प्रचलन है, जिसमे युवाओ की टोली रंगों से नहाये हुए होली के गीत गाते हुए धमाल मचाते है। राजस्थान में इस अवसर पर विशेष रूप से जैसलमेर के मंदिर महल में लोकनृत्यों में डूबा वातावरण देखते ही बनता है जब कि हवा में लाला नारंगी और फ़िरोज़ी रंग उड़ाए जाते हैं।

मध्यप्रदेश के नगर इंदौर में इस दिन सड़कों पर रंग मिश्रित सुगंधित जल छिड़का जाता है। लगभग पूरे मालवा प्रदेश में होली पर जलूस निकालने की परंपरा है। जिसे गेर कहते हैं। जलूस में बैंड-बाजे-नाच-गाने सब शामिल होते हैं। नगर निगम के फ़ायर फ़ाइटरों में रंगीन पानी भर कर जुलूस के तमाम रास्ते भर लोगों पर रंग डाला जाता है।



होली का महत्व

होली का त्यौहार हर किसी के जीवन में बहुत महत्त्व रखता है। होलिका दहन के रूप में ये पाप पर पुण्य की विजय का प्रतीक है। इसी दिन से हिन्दू धर्म के अनुसार नव वर्ष आरंभ होता है। ये त्यौहार ही होते हैं जो सबको आपस में मिला देते हैं। इससे इनका महत्त्व और बढ़ जाता है। हर त्यौहार एक सन्देश के साथ अत है।

रंगों का यह त्यौहार भी यही सन्देश लेकर आता है की जैसे सब के चेहरे रंग जाने पर एक से नजर आते हैं। उसी तरह हमें अपने जीवन में सबको बराबरी की नजर से देखना चाहिए और सदा हँसते मुस्कुराते रहना चाहिए। तभी इस त्यौहार का अर्थ पूर्ण होगा।

आपको होली की जानकारी देता ये लेख होली पर निबंध कैसा लगा हमें कमेंट बॉक्स में अवश्य बताएं।

धन्यवाद।

आपके लिए खास:

2 comments

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HindIndia फ़रवरी 1, 2017 - 6:13 अपराह्न

बहुत ही अच्छा article है। ……… very nice with awesome depiction ……… Thanks for sharing this article!! :)

Reply
Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh फ़रवरी 2, 2017 - 7:07 पूर्वाह्न

धन्यवाद HindIndia ji……m

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