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श्री गणेश जन्म कथा और चतुर्थी उस्तव की कहानी : गणपति जी की कहानियाँ-१

by Sandeep Kumar Singh
13 minutes read

श्री गणेश जन्म कथा :- नमस्कार मित्रों, जैसा की आप सबको पता ही है की भाद्रप्रद की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी मनायी जाती है। गणेश चतुर्थी भगवान गणेश के जन्म के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। गणेश चतुर्थी कैसे मनाई जाती है ये तो सबको पता है। लेकिन गणेश चतुर्थी क्यों मनायी जाती है? ये शायद ही सबको पता हो। तो आइये जानते हैं श्री गणेश जन्म कथा और उसके अवतारों के बारे में।

श्री गणेश जन्म कथा

श्री गणेश जन्म कथा और चतुर्थी उस्तव की कहानी

श्री गणेश जन्म कथा और जन्म के कारण

गणेश जी के जन्म का कारण पार्वती जी की दो सखियाँ थीं। जिनका नाम जया और विजया था। गणेश जी के अस्तित्व में आने के पीछे यही दोनों थीं। उन्होंने स्नानागार के बाहर एक ऐसा पहरेदार लगाने की सलाह दी थी जो स्नानागार में शिव जी को भी ना जाने दे।

बात कुछ ऐसी हुयी की पार्वती जी जब भी स्नानागार में स्नान करने जाती तो बाहर किसी शिवगण को पहरे पर बैठा दिया जाता। लेकिन दुविधा ये थी कि पहरेदार होने के बाद भी शिव जी स्नानागार में चले जाते थे। किसी भी शिवगण में इतनी हिम्मत न थी की वो शिव जी की आज्ञा का उल्लंघन कर सके। और ऐसा एक बार हुआ भी।

उस समय पार्वती जी को यह अहसास हुआ कि द्वार पर कोई ऐसा पहरेदार होना चाहिए जो किसी को भी अन्दर ना आने दे। बस इसी विचार से पार्वती जी ने अपनी सखियों की बात को मानते हुए मैल से एक इन्सान का पुतला बनाया और उसमे जान डाल दी।

उसे आशीर्वाद देते हुए पार्वती जी ने उसे बताया कि तुम मेरे पुत्र हो। तुम्हें यहाँ खड़े हो कर पहरा देना है और जब तक मेरी आज्ञा न हो किसी को भी अन्दर मत आने देना। इतना कहकर माता पार्वती जी ने उसे एक छड़ी दी और द्वार पर नियुक्त कर स्नानागार में चली गयीं।

थोड़ी देर बाद शंकर जी वहां पहुंचे तो गणेश जी ने उन्हें अन्दर जाने से रोक लिया। भगवान् शंकर ने गणेश को बहुत समझाया की उन्हें अन्दर जाने दें। लेकिन गणेश जी ने माँ की आज्ञा का पालन करते हुए शंकर जी को अन्दर न जाने दिया। यहाँ से बात इतनी बढ़ी पहले गणेश को मारने शिवगण आये जब उनसे बात न बनी तो सब देवता आये और उसके बाद स्वयं ब्रह्मा जी और विष्णु जी आये। अंत में सब हार मान गए।

फिर शंकर जी को बुलाया गया। बहुत घनघोर युद्ध हुआ लेकिन गणेश जी को कोई हरा नहीं पाया। तब शंकर जी और विष्णु जी ने देखा की इसे ऐसे कोई भी नहीं हरा सकता इसलिए कोइ चाल चलनी पड़ेगी। तब जब गणेश जी विष्णु के साथ लडाई में व्यस्त थे। तब शिवजी ने मौके का फ़ायदा उठा कर गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया।

इस बात का पता जब माता पार्वती को चला तो माता पार्वती ने कुपित होकर कई शक्तियों को निकाला और सबको संसार ख़त्म करने का आदेश दे दिया। ऐसे में चारों ओर हाहाकार मच गया। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था की ये सब कैसे रोका जाए। सबने माँ को मनाने की कोशिश की। परन्तु सब व्यर्थ। अंत में नारद जी ने ये उपाय दिया की माता उमा की स्तुति की जाए। जिससे उनका क्रोध शांत होगा और ये सब रुकेगा। सब ने ऐसा ही किया और पार्वती जी इस बात पर मानी की उनके पुत्र को दुबारा जीवित किया जाएगा।

शिवजी को जाकर सब देवताओं ने यह बात बाताई तो उन्होंने कहा कि उत्तर दिशा में जाओ और वहां जो भी प्राणी मिले उसका सिर लाकर गणेश के धड़ से जोड़ दिया जाए। जब देवता उत्तर दिशा में गए तो उन्हें सबसे पहले एक दांत वाला हाथी मिला। तो शिव की आज्ञा अनुसार वो उस एक दांत वाले हाथी के मस्तक को ले आये और उसे गणेश के धड़ के ऊपर लगा दिया।

गणेश जी के पुनर्जीवित होने के बाद भगवान् शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि आज के बाद जब भी किसी प्रकार की पूजा की जायेगी तो किसी अन्य देवता से पहले तुम्हारी पूजा की जाएगी। तुम्हारा जन्म भाद्रप्रद की चतुर्थी को शुभ चंद्रोदय में हुआ है। इसलिए उस दिन तुम्हारा व्रत रखना कल्याणकारी होगा। गणेश चतुर्थी का यह व्रत महिला और पुरुष दोनो के लिए लाभाकरी होगा। तुम्हारा व्रत रख के मनुष्य जिस-जिस चीज की कामना करेगा। उसे वह प्राप्त हो जाएगा।


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तो ये था गणेश चतुर्थी की कहानी का पहला पहलु। आइये अब पढ़ते हैं दूसरी और कम सुनी गणेश चतुर्थी की कहानी :-

पार्वती का व्रत और गणेश जन्म कथा

शिव और पार्वती के विवाह को कुछ ही समय व्यतीत हुआ था। पार्वती जी ने शिव जी से कहा की मुझे एक अत्यंत श्रेष्ठ पुत्र की कामना है। इस पर शिवजी ने उन्हें ‘ पुण्यक ‘ व्रत रखने को कहा। जिसे रखने से किसी भी प्रकार की इच्छा की पूर्ती होती है। इस व्रत की अवधि एक वर्ष की होती है।

पार्वती जी ने ‘ पुण्यक ‘ व्रत रखना आरंभ किया। व्रत के संपूर्ण होने पर स्वयं भगवान् कृष्ण बालक के रूप में भगवान् शिव और माता पार्वती के यहाँ अवतरित हुए। बालक के आने के बाद उसका जातकर्म-संस्कार करवाया गया।

कुछ दिन बाद शनि देव, माता पार्वती भगवान् शिव और गणेश भगवान् के दर्शन हेतु कैलाश को पधारे। वे अपना सिर झुकाए हुए थे। इसलिए वे माता पार्वती और गणेश भगवान् के दर्शन नहीं कर पा रहे थे। कारण पूछने पर पता चला कि शनि देव को उनकी पत्नी ने यह श्राप दिया है कि वे जिसे देखेंगे उसका विनाश हो जाएगा।

ये बात सुन पार्वती और उनकी सखियाँ हंसने लगीं। तब माता पार्वती ने कहा कि शाप मिला है तो नष्ट तो हो नहीं सकता लेकिन मेरा विचार है की हमें कुछ नहीं होगा इसलिए तुम मुझे और मेरे पुत्र को देख सकते हो।

काफी सोच विचार करने के बाद शनि देव ने माता पार्वती की और न देखकर बालक गणेश की और देखने का मन बनाया। जैसे ही शनि देव ने बाल गणेश की और देखा उसी क्षण शाप के कारण बालक का मस्तक छिन्न हो गया और भगवान कृष्ण में समाहित हो गया। यह देख माता पार्वती सहित सभी लोग व्याकुल हो गए। शनि देव तो लज्जा से सिर झुकाए खड़े थे। कैलाश में मातम छा गया था।

उसी समय भगवन विष्णु ने अपने वाहन गरुड़ का स्मरण किया। गरुड़ के प्रकट होते ही भगवन विष्णु उन पर सवार होकर उत्तर दिशा की ओर निकल पड़े। पुष्पभद्रा नदी के निकट एक हाथी और हथिनी सो रहे थे। तभी श्री हरी ने अपने चक्र से उस हाथी के मस्तक को काट दिया। और वो मस्तक ले जाकर बाल गणेश के धड़ पर लगा दिया।

इस पर पार्वती जी ने आपत्ति जताई कि यह कोई षड़यंत्र है। अब तो उनका पुत्र कुरूप नजर आएगा। इस पर विष्णु जी ने पार्वती जी को आश्वाशन दिया कि अगर आपको यही चिंता है तो मैं इसे आशीर्वाद देता हूँ कि यह बालक सबसे ज्यादा बुद्धिमान होगा। पूरे विश्व में इस बालक का पराक्रम सबसे ज्यादा रहेगा। यह भक्तों को सदैव संतुष्ट करेगा और प्रथम पूजा का अधिकारी होगा। तब जाकर पार्वती जी शांत हुयीं।

उसके बाद गणेश जी को परशुराम जी ने एकदंत गणेश बना दिया था। ये कथा तो लगभग सभी को पता होगी। अगर नहीं पता तो हम बताये देते हैं।

कैसे हुए गणपति एकदंत

एक बार परशुराम जी भगवान् शंकर के दर्शन हेतु कैलाश पहुंचे। परन्तु भगवान् निंद्रा में थे और द्वार पर गणेश जी थे। गणेश जी ने उन्हें रोकने का बहुत प्रयास किया। लेकिन परशुराम कुछ भी सुनने को तैयार नहीं था। अंत में फैसला ये हुआ कि क्यों न युद्ध कर लिया जाए। जो जीतेगा वो अपनी मर्जी करेगा।

खूब घमासान लड़ाई हुयी। अंत में कोई राह न देख परशुराम जी ने अपना परशु गणेश जी की और फेंका। ये परशु भगवान् शिव से वरदान स्वरुप परशुराम को प्राप्त था। तब अपने पिता जी के कारण उस परशु का सम्मान करते हुए गणेश जी ने वो परशु अपने बाएं दांत से पकड़ लिया।

जैसे ही उन्होंने दांत से परशु पकड़ा। उनका दांत मूल से ही उखड़ गया। तभी चारों तरफ बड़ी भारी गर्जना हुयी। शंकर जी जाग गए और पार्वती जी भी बाहर आ गयीं। जब पार्वती जी ने अपने पुत्र गणेश की हालत देखि तो वो परशुराम पर बरस पड़ीं।

इस से पहले कि और कुछ होता। परशुराम जी ने मन ही मन भगवान् शंकर को प्रणाम किया और वहाँ से चल पड़े।

ये कहाँ पहुँच गए हम? हम तो गणेश चतुर्थी के बारे में जानकारी हासिल कर रहे थे। तो आगे बात करते हैं गणेश चतुर्थी की कहानी में उनके अवतार मयूरेश्वर के बारे में।

त्रेतायुग में मयूरेश्वर अवतार

कहते है त्रेतायुग में उग्रेक्षण नामक राक्षस हुआ। उस राक्षस ने इतना आतंक फैलाया कि उस से मुक्ति पाने के लिए देवताओं ने अपने गुरु बृहस्पति की आज्ञा पाकर संकष्टीचतुर्थी का व्रत रखा। उस व्रत से प्रसन्न होकर गणेश जी देवताओं को वरदान दिया कि जल्दी ही वो माता गौरी के पुत्र मयूरेश्वर के रूप में जन्म लेंगे। उसके बाद उग्रेक्षण का संहार करेंगे।

उधर जब शिव जी को पता चला कि देवता हार गए हैं और उग्रेक्षण ने सब को हरा दिया है तो वे भी माता पार्वती को लेकर त्रिसन्ध्या क्षेत्र में निवास करने लगे। वहां रह कर माता पार्वती ने तपस्या की। जिसके फलस्वरूप उनके घर बालक मयूरेश्वर ने भद्रपद शुक्ल की चतुर्थी को जन्म लिया। उस दिन चंद्रवार, स्वाति नक्षत्र, सिंह लग्न के साथ पाँचों लग्नों का साथ था। फिर बालक का जातकर्म संस्कार कराया गया।

बालक मयूरेश्वर को मरवाने के लिए उग्रेक्षण ने गृध्रासुर, क्षेमासुर, कुशलासुर, क्रूर, व्योमासुर, राक्षसी शतमहिषा आदि कई राक्षसों को भेजा। लेकिन मयूरेश्वर के आगे कोई टिक न सका।

जब मयूरेश्वर विवाह योग्य हुए तो उनके विवाह की बात चली। जब विवाह में जाने के लिए सब को संदेसा भेजा गया तो उग्रेक्षण के डर से सब ने मना कर दिया। तब मयूरेश्वर ने ये वचन दिया की अब वे विवाह उग्रेक्षण की मृत्यु उपरांत ही विवाह करेंगे। फिर उन्होंने उग्रेक्षण का भी अंत कर दिया।

अब बारी थी द्वापरयुग की

ब्रह्मा जी के मुख से जन्मे सिन्दूरासुर राक्षस ने तीनों लोकों में आतंक मचा दिया था। उसके संहार के लिए देवताओं ने गणेश जी की पूजा की। इस बार गणेश जी ने माता पार्वती के यहाँ गजानन के रूप में अवतार लिया। इस अवतार में उन्होंने सिन्दुरासुर और लोभासुर का वध किया।


इसी तरह गणेश जी ने अलग-अलग समय पर अलग-अलग अवतार लिए। उनमें जो आठ अवतार प्रमुख माने जाते हैं वो इस प्रकार हैं :-

गणेश जी के आठ प्रमुख अवतार

वक्रतुंड

भगवान् गणेश्वर ने ‘ वक्रतुंड ‘ अवतार में मत्ससुर का संहार किया था।

एकदंत

एकदंत का अवतार गणेश जी ने राक्षस मदासुर को मारने के लिया था।

महोदर

भगवान् गणेश ने महोदर अवतार राक्षस मोहासुर का वध करने के ली या लिया था।

गजानन

गजानन अवतार उन्होंने सिन्दुरासुर और लोभासुर के अंत के लिया था।

लम्बोदर

इस अवतार में उन्होंने राक्षस क्रोधासुरे को मारा था।

विकट

यह अवतार उन्होंने कामासुर का वध करने के लिए लिया।

विघ्नराज

इस अवतार में वे माम्तासुर के संहारक बन कर आये थे।

धुम्रवर्ण

धुम्रवर्ण अवतार लेकर गणेश जी ने अभिमान नामक असुर का नाश किया था।



उम्मीद है आपने श्री गणेश जन्म कथा और चतुर्थी उस्तव की कहानी के माध्यम से काफी जानकारी हासिल कर ली होगी। यदि अभी भी आपके मन में कोई प्रश्न है या सुझाव है तो बिना किसी देरी के कमेंट बॉक्स में लिखें।

पढ़िए सुंदर भक्तिमय रचनाएं :-

धन्यवाद।

आपके लिए खास:

7 comments

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Manoj Dwivedi जनवरी 31, 2021 - 9:15 पूर्वाह्न

Mr genius जी आपका ब्लॉग बहुत अच्छी किस्से कहानियों को समेटे है आप बहुत अच्छे ब्लॉगर हैं ,आप की ब्लॉग की दो कहानियां गणेंश जी की जन्म कथा और युयत्स की कहानी पढ़ी बढ़िया लगा ।
अब जरूरी है इन दोनों कहानियों का शुक्ल भी कुछ तो दे ही दूं जिससे आप हमेशा सक्रियता से लिखते रहें आपको प्रोत्साहन मिलता रहे ।
धन्यवाद।

Reply
Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh जनवरी 31, 2021 - 8:59 अपराह्न

धन्यवाद मनोज जी….. आपके यह प्रोत्साहित करते शब्द ही हमारे लिए इन कहानियों का मूल्य है। कहानिया तो बहुत लोग पढ़ते हैं लेकिन जो अपने विचार हम तक पहुंचाता है, वास्तव में वही हमे सच्चा प्रोत्साहन देता है।

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Himmat Singh सितम्बर 2, 2019 - 4:25 अपराह्न

Jay ganpate bapa moreya

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HindIndia सितम्बर 3, 2017 - 12:24 अपराह्न

बहुत ही उम्दा …. nice article …. ऐसे ही लिखते रहिये और लोगों का मार्गदर्शन करते रहिये। :) :)

Reply
Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh सितम्बर 3, 2017 - 8:54 अपराह्न

सराहना करने के लिए धन्यवाद HundIndia जी।

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दीपक अगस्त 24, 2017 - 6:28 अपराह्न

कुछ और रोचक कहानियाँ भेजा करते रहना

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Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh अगस्त 29, 2017 - 12:17 अपराह्न

जरूर दीपक जी।

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