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दहेज प्रथा पर कविता :- दहेज की आग में जलती लाज | Dahej Pratha Par Kavita

by ApratimGroup
5 minutes read

बेटियों पर लिखी रचनाएं इस ब्लॉग पर आपने पहले भी पढ़ी होंगी। ये कविता उन कविताओं से थोड़ी अलग है। मूल रूप से यह कविता पंजाबी में थी। जिसे हमने लेखक की आज्ञा से हिंदी में रूपांतरित किया है। आशा करते हैं की आपको यह दहेज प्रथा पर कविता जरूर पसंद आएगी।

दहेज प्रथा पर कविता

दहेज प्रथा पर कविता

आज सुबह के चार बजे
किसी बच्चे के रोने की आवाज आई,
उस आवाज में इतना सुकून सा था
मानो किसी कोयल ने रागिनी गायी,

मेरे कानों में रस वो घोल रही थी
जैसे मुझसे कुछ बोल रही थी,
जादू कुछ ऐसा था उसमें
पूरी कुदरत को वो मोह रही थी,

परिवार ख़ुशी से झूम रहा था
मैं भी वहीं पर घूम रहा था,
देखा तो जाना ये मैंने
घर में आई बेटी को
हर कोई ही चूम रहा था,

ख़ुशी से मैंने उसको उठाया
इधर उधर उसको भी घुमाया,
वो भी खुश थी मुझसे और
मैंने भी था प्यार जताया,

न कोई और दनतेगा तुझको
न कोई फटकार लगाएगा,
भगवान को मान के साक्षी
तेरा पिता ये वादा निभाएगा,

जब तक मेरा जीवन है
तुझ पर आँच न कोई आएगी,
आशीर्वाद रहेगा संग में
चाहे तू जहाँ भी जाएगी,

फूलों से सुन्दर चेहरा
रौनक जो मेरे घर आई थी,
घर में जब वो खेला करती
मुझे सारी दुनिया भुलाई थी,

वो सबकी बन गयी लाडली थी अब
उसकी हर अदा न्यारी थी,
होते होंगे बेटे प्यारे परिवारों को
पर हमें अपनी बेटी प्यारी थी,

पढ़ लिख कर सम्मान बढ़ाया
मेरी और भी शान बढ़ाई थी,
कभी बोली न ऊँची आवाज में वो
इक बेटी होने की उसने
हर इक रस्म निभाई थी,

जब उम्र हुयी उसकी तो
कर दी हमने उसकी शादी,
जान से प्यारी जो बेटी थी
रोते हुए डोली में बैठा दी,

कसर कोई न छोड़ी थी
दहेज़ का हर सामान दिया,
ससुराल से कभी न आये शिकायत
माँ ने था फरमान दिया,

माँ के वचन को रख सिर माथे
चल दी वो ससुराल में,
किस्मत ने न जाने साथ क्यों छोड़ा
पड़ गयी वो बुरे हाल में,

जो मुख से मीठा बोले थे
दुःख देने लगे वो जहर बनके,
मेरी बेटी के ससुराल वाले
टूट पड़े थे उस पर कहर बनके,

कुछ दिन ही तो बीते थे
वो अपने रंग दिखने लगे,
नयी-नयी फरमाइशों से
वो उसको थे सताने लगे,

फिर भी न शिकायत की उसने
कभी एक भी लफ्ज़ वो बोली न,
जख्मों से भरा शरीर था पर
वो अपनी हिम्मत से डोली न,

हद बढ़ गयी थी अब लोभियों की
उसे पीट के दिल न भरता था,
उसे कर दिया आग के हवाले पर
फिर भी पापी न कोई डरता था,

जिसे डर लगता था धूप से वो
चीखें थीं आग में मार रही,
आके बचा ले बाबुल मुझको
जलती आग में वो पुकार रही,

कोई बता दे क्या थी खता उसकी
वो तो मूरत बस इक प्यारी सी थी,
बेबस हो गयी थी आग में जो
वो किसी का दुःख न सहती थी,

कहाँ रहेंगी महफूज बेटियाँ हमारी
ए खुदा तू कोई इंतजाम कर दे,
मिल जाए आज़ादी बेटियों को
ऐसा कोई कलाम कर दे,

सजा दे तू ऐसे पापियों को
जो मासूमों को हैं तंग करते,
वरना ‘ परगट ‘ की ये गुजारिश है
कि तू बेटियों का पैदा होना बंद कर दे।

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Pargat Singhमेरा नाम परगट सिंह है । मैं अमृतसर जिले के अंतर्गत बंडाला गाँव में रहता हूँ। मैं एक स्कूल में संगीत का अध्यापन करता हूँ। इसके साथ-साथ मुझे बचपन से ही कहानियां ,कवितायें, लेख , शायरियाँ भी लिखने का शौंक है।

इस दहेज प्रथा पर कविता के बारे में अपनी राय कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें। जिससे लेखक का हौसला और सम्मान बढ़ाया जा सके।

धन्यवाद।

Image Source :- Patrika News

आपके लिए खास:

11 comments

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Sonakshi Shahu दिसम्बर 30, 2023 - 7:11 अपराह्न

I am sharing your poem my YouTube channel

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Rajeev Kumar Ranjan अगस्त 22, 2022 - 5:32 अपराह्न

I am sharing your poem on Facebook in my groups with your name for mass awackening purpose.

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Rajeev Kumar Ranjan अगस्त 22, 2022 - 5:30 अपराह्न

Salute you Parvat Singh Ji!

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सूबा लालअंजाना अगस्त 6, 2022 - 6:20 अपराह्न

दिल पे छाप छोड़ दी आपकी इस कविता ने,पर लाज़ शर्म हया सब कुछ त्याग दिया है दुष्टता ने
जिससे जिस पे वो जन्म लिया वो माँ भी किसी की बेटी थी , पर उनकी आँखों में दर्द नहीं क्योकि लालसा ने उसकी जगह जो ली.
प्रेरणादायी कविता के लिए आप जी को ढेर सारा धन्यवाद जी,

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Mr.Ashish Singhaniya मार्च 2, 2019 - 3:34 अपराह्न

Nice sir.i most like this type poem.plz give me permission I can use this poem.
My name Mr. Ashish Singhaniya. I am computer science student in 2nd from IIIT MANIPUR Imphal

Reply
Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh मार्च 2, 2019 - 5:26 अपराह्न

Mr. Ashish Contact us on our email Id or on whatsapp..

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गरिमा यादव जनवरी 3, 2019 - 8:10 अपराह्न

बहुत सुन्दर कविता है।

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Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh जनवरी 3, 2019 - 9:59 अपराह्न

धन्यवाद गरिमा यादव……

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आचार्य अनुरागी नवम्बर 27, 2018 - 10:00 पूर्वाह्न

बहुत सुन्दर स्थीति का विवरण आप ने इस कबिता के जरिये किया है ।

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Rajesh Kumar nishad अक्टूबर 15, 2018 - 1:27 अपराह्न

Very nice poem

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LOKANAND JAMBHULKAR अप्रैल 24, 2018 - 2:27 अपराह्न

परगट सिंहजी
आपको प्रमाण ,आपकी " दहेजकी आग में जलती लाज " हृदयस्पर्शी कविता पढ़ी अंतकरण मानवतासे भर आया
आपके ओजस्वी लेखनीको प्रणाम करता हु , वंदन करता हु आगेभी यैसे ही कविता लिखते रहिये
नमस्कार

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