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बचपन को ढूँढने बैठा हूँ :- बचपन की यादें छोटी कविता भाग – 2

by Sandeep Kumar Singh
3 minutes read

बचपन जीवन का एक ऐसा हिस्सा होता है जिसे हम जब भी याद करते हैं तो हमारे चेहरे पर बस एक हलकी सी मुस्कान आ जाती है। ये बचपन की यादें अक्सर हमारी सोच में तभी आती हैं जब हम कुछ फुर्सत के लम्हों में होते हैं। ऐसे ही एक लम्हे में मैंने ये कविता ‘ बचपन को ढूँढने बैठा हूँ ‘ लिखने की कोशिश की है। उम्मीद करता हूँ ये कविता आपको आपकी बचपन की यादों के साथ जोड़ने में कामयाब होगी।

बचपन को ढूँढने बैठा हूँ

बचपन को ढूँढने बैठा हूँ

शाम ढले आसमान के तले मैं आँखें मूँद के बैठा हूँ,
फुर्सत के कुछ लम्हों में बचपन को ढूँढने बैठा हूँ।

हैं गम भी बहुत परेशानियाँ भी हैं
वक़्त की दी हुयी निशानियाँ भी हैं,
और साथ में हैं दर्द कई उन सब को भूलने बैठा हूँ
फुर्सत के कुछ लम्हों में बचपन को ढूँढने बैठा हूँ।

कभी खुले असमान के नीचे गलियों में दौड़ जब लगती थी
माँ-पापा प्यार बहुत करते डांट कभी-कभी पड़ती थी,
उन्हीं बीते पलों को आज मैं फिर से टटोलने बैठा हूँ
फुर्सत के कुछ लम्हों में बचपन को ढूँढने बैठा हूँ।

वो लाइट का आना-जाना मिलकर सबका शोर मचाना
रात को पढ़ना लालटेन में भोर भये से फिरे उठ जाना,
गाँव के विद्यालय जाती उस पगडण्डी पर घूमने बैठा हूँ
फुर्सत के कुछ लम्हों में बचपन को ढूँढने बैठा हूँ।

फिर टन-टन घंटी बजती थी दौड़ के घर सब जाते थे
खेलते थे बच्चे जब शाम को बड़े बुजुर्ग चौपाल सजाते थे,
मंदिर में होती आरती और रामायण सुनने बैठा हूँ
फुर्सत के कुछ लम्हों में बचपन को ढूँढने बैठा हूँ।

आज कहाँ वो गलियां हैं कहाँ रहे वो चौबारे
कहाँ गये वो साथी जो हर शाम हमको जो पुकारे,
याद जो आये उन किस्सों को आज मैं बुनने बैठा हूँ
फुर्सत के कुछ लम्हों में बचपन को ढूँढने बैठा हूँ।

शाम ढले आसमान के तले मैं आँखें मूँद के बैठा हूँ,
फुर्सत के कुछ लम्हों में बचपन को ढूँढने बैठा हूँ।

पढ़िए कविता :- बचपन की यादें – नानी का घर

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धन्यवाद।

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9 comments

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Devendra Kumar नवम्बर 14, 2019 - 9:03 पूर्वाह्न

आपने बहुत अच्छी कविताऐं लिखी हैं
पढ़ते पढ़ते अपना बचपन याद आ गया।

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Rishpal bajekan दिसम्बर 19, 2018 - 7:59 अपराह्न

पुरानी यादें ताजा कर दी आपने

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Rishpal bajekan दिसम्बर 19, 2018 - 7:58 अपराह्न

आपकी कविता को कॉपी पेस्ट कर सकता हूं

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Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh दिसम्बर 25, 2018 - 2:21 अपराह्न

Rishpal Bajekan जी आप कविता को लिंक के साथ शेयर कर सकते हैं।

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Kunal singh नवम्बर 13, 2018 - 12:39 अपराह्न

Sir apka poetry padh k mujhe Rona aagya.
Bs yehi question krta hu khud se ki mai itna bda q ho gya ????????????

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Yogesh Chandra Goyal अप्रैल 24, 2018 - 9:38 पूर्वाह्न

बचपन को ढूँढने बैठा हूँ –
Enjoyed reading this lovely poem
thanks a lot Sandeep bhai

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Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh अप्रैल 24, 2018 - 10:44 अपराह्न

Thank you also for reading this Yogesh Chandra Goyal ji…

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Naveen जनवरी 13, 2018 - 1:44 पूर्वाह्न

गुरुजी आपकी कविता पढ़कर बहुत आनंद मिला, हर रोज़ मैं यही से अपने status copy करके update करता हूँ ????☺️☺️☺️

Reply
Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh जनवरी 13, 2018 - 11:33 पूर्वाह्न

नवीन जी अच्छा लगा ये जानकर की आपको हमारी रचनाएं पसंद आती हैं। धन्यवाद। लेकिन स्टेटस के साथ हमारे ब्लॉग को भी अवश्य शेयर करें। धन्यवाद।

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